सोशल मीडिया की बिसात पर शरीफ बनाम इमरान                           

पाकिस्तान में राजनीतिक विरोध                                                                                  
पाकिस्तान में सरकार विरोधी लॉन्ग मार्च और प्रदर्शन सिर्फ़ सड़कों पर नहीं हो रहा है, बल्कि सियासी दल सोशल मीडिया पर भी टकरा रहे हैं.


इमरान ख़ान की पार्टी पाकिस्तान तहरीके इंसाफ (पीटीआई) ने प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ पर इस्तीफ़ा देने का दबाव बनाने के लिए ट्विटर और फ़ेसबुक पर समर्थन जुटाने की मुहिम शुरू की हुई है.
हालांकि सरकार का दावा है कि इमरान ख़ान ऑनलाइन समर्थन ख़रीद कर जुटा रहे हैं.
उसका कहना है कि 
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नवाज़ शरीफ की सरकार ने धोखाधड़ी के ज़रिए चुनाव जीता है.

पीटीआई के फेसबुक मैनेजर जिब्रान इलियास कहते हैं, "पीटीआई का विरोध मार्च आवाम को सच्ची आज़ादी दिलाने के लिए है. वे (सरकार) लोगों का जनादेश चुरा नहीं सकते हैं."

हैशटैग की जंग

इस्लामाबाद में पीटीआई के विरोध प्रदर्शनों के मद्देनज़र सरकार ने 
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सुरक्षा व्यवस्थाचाक चौबंद है. ज़्यादातर प्रदर्शनकारी पूर्व क्रिकेटर और पीटीआई नेता इमरान ख़ान के समर्थक हैं.

सोशल मीडिया पर इसी को लेकर लोकप्रिय #AzadiMarchPTI के हैशटैग से लोग इन विरोध प्रदर्शनों के लिए इकट्ठा हो रहे हैं. पिछले तीन चार दिनों के दौरान ट्विटर पर ये हैशटैग 50 हज़ार से ज़्यादा बार इस्तेमाल किया जा चुका है.
ज्रिबान इलियास कहते हैं कि ये हैशटैग उनकी पार्टी का आधिकारिक हैशटैग है, जो लोगों के मिज़ाज को जाहिर कर रहा है.
बीबीसी उर्दू के सोशल मीडिया एडिटर ताहिर इमरान कहते हैं, "इमरान ख़ान की पार्टी सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय है और यहाँ उनके समर्थकों की तादाद भी अच्छी ख़ासी है. इनमें शहरी पृष्ठभूमि के वैसे नौजवान हैं, जिनकी इंटरनेट तक पहुँच है. इसीलिए पीटीआई सोशल मीडिया पर इक्कीस पड़ रही है. लेकिन सत्तारूढ़ 
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पीएमएल(एन) भी यहाँ मौजूदगी दर्ज करा रही है."

लाइक्स और ट्वीट

ब्रिटेन में पीएमएल(एन) के सोशल मीडिया मैनेजर शहज़ाद चौधरी कहते हैं, "वे लाइक्स ख़रीद रहे हैं और मुझे नहीं लगता कि उन्हें इससे कोई फ़ायदा होने वाला है. पैसे से ख़रीदे गए लोग मुल्क को गुमराह कर सकते हैं."
लेकिन जिब्रान इलियास इन आरोपों को खारिज करते हैं, "लाइक्स और ट्वीट उन्हें मिल रहे समर्थन का ही एक पहलू है."
पाकिस्तानी अख़बार 'डेली डॉन' के न्यूज़ एडिटर कहते हैं, "पाकिस्तान की सियासी पार्टियों के लिए सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों को लगता है कि लाइक्स वोट में बदले जा सकते हैं. लेकिन 2013 के आम चुनावों हमने देखा कि ये सच हो, ज़रूरी नहीं."


पहला भाषण: नेहरू और जिन्ना का फ़र्क

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 14 अगस्त 1947 की आधी रात को जो भाषण दिया था उसे 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' के नाम से ही जाना जाता है. पाकिस्तान बनने से कुछ क्षण पहले मोहम्मद अली जिन्ना ने भी अपने देशवासियों को संबोधित किया था.इन दोनों भाषणों के अंश:
जवाहर लाल नेहरू
आज हम दुर्भाग्य के एक युग का अंत कर रहे हैं और भारत पुनः खुद को खोज पा रहा है. आज हम जिस उपलब्धि का उत्सव मना रहे हैं, वो महज एक क़दम है, नए अवसरों के खुलने का. इससे भी बड़ी जीत और उपलब्धियां हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं.
भारत की सेवा का अर्थ है लाखों-करोड़ों पीड़ितों की सेवा करना. इसका अर्थ है ग़रीबी, अज्ञानता, और अवसर की असमानता मिटाना. हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की यही इच्छा है कि हर आँख से आंसू मिटे. शायद ये हमारे लिए संभव न हो पर जब तक लोगों कि आंखों में आंसू हैं, तब तक हमारा काम ख़त्म नहीं होगा.
आज एक बार फिर वर्षों के संघर्ष के बाद, भारत जागृत और स्वतंत्र है.
भविष्य हमें बुला रहा है. हमें किधर जाना चाहिए और हमें क्या करना चाहिए, जिससे हम आम आदमी, किसानों और कामगारों के लिए आज़ादी और अवसर ला सकें, हम ग़रीबी, हम एक समृद्ध, लोकतान्त्रिक और प्रगतिशील देश बना सकें. हम ऐसी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं को बना सकें जो हर आदमी-औरत के लिए जीवन की परिपूर्णता और न्याय सुनिश्चित कर सके?
कोई भी देश तब तक महान नहीं बन सकता जब तक उसके लोगों की सोच या कर्म संकीर्ण हैं.
मोहम्मद अली जिन्ना

मुझे मालूम है कि कई लोग भारत के विभाजन - पंजाब और बंगाल के बंटवारे से सहमत नहीं हैं. लेकिन अब जबकि इसकी स्वीकृति मिल गई है अब हम सब का फ़र्ज़ है कि जो समझौता हो गया है उसे अंतिम और अटूट माने.
विभाजन होना ही था. इस बारे में दोनों समुदायों की चिंता - जहाँ कहीं भी एक समुदाय बहुमत में है और दूसरा अल्पसंख्यक -समझी सकती है.
सवाल ये है कि क्या जो हुआ उसके विपरीत क़दम उठाना संभव था?
सरकार का सब से पहला कर्तव्य क़ानून व्यवस्था को बनाकर रखना है, ताकि देशवासियों की संपत्ति, जीवन और धार्मिक आस्थाएं सुरक्षा रखी जा सकें.
हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों तरफ ऐसे लोग हैं जो बंटवारे को नापसंद करते हैं. मेरी राय में इसके इलावा कोई और समाधान नही था. मुझे उम्मीद है भविष्य मेरी राय के पक्ष में फ़ैसला देगा.
एक संयुक्त भारत का विचार कभी सफल नहीं होता. मेरे विचार में इसका अंजाम भयानक होता. मेरा ख़्याल सही है या ग़लत, ये वक़्त बताएगा.
समय के साथ-साथ हिन्दू - मुलमान, बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक के फ़र्क ख़त्म होंगे. क्योंकि मुसलमान की हैसियत से आप पठान, पंजाबी, शिया या सुन्नी हैं. हिन्दुओं में आप ब्राह्मण, खत्री, बंगाली और मद्रासी हैं. अगर ये समस्या नहीं होती तो भारत काफ़ी पहले आज़ाद हो जाता.
आप देखेंगे कि वक़्त के साथ देश के नागरिक की हैसियत से हिन्दू, हिन्दू नहीं रहेगा मुसलमान, मुसलमान नहीं रहेगा, धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं क्यूंकि ये हर व्यक्ति का व्यक्तिगत ईमान है, बल्कि सियासी हैसीयत से.